सोमवार, 17 जून 2013

इबादत इश्क में जिसकी अभी तक भी अधूरी है






इबादत इश्क में जिसकी अभी तक भी अधूरी है 

सनम को ही खुदा समझो यही श्रद्धा सबूरी है ||



पलक पर आंसुओ की सेज दिल में याद के बंजर 

मिलन की चाह अच्छी है जुदाई भी जरूरी है ||


हकीकत आज भी है कल रहेगी और कल भी थी 

मिलन होगा भरोसा रख भले ही आज दूरी है ||


ज़माना क्या कहेगा इन रिवाजों में उलझना मत 

यहाँ बस प्यार से ही प्यार की अरदास पूरी है ||


चमक है इश्क के घर में खनक है यार के दर पर 

खुदा के नूर से रौशन यहाँ हर आँख नूरी है ||


किसी के नाम का कलमा पढ़ा जबसे मेरे दिल ने 

खुमारी छा गयी के क्या कहूँ तन मन सिन्दूरी है ||


मिले गम या मिले खुशियाँ किसे परवाह अब इसकी 

पिलाए जा पिए जा तू मुहोब्बत मय सुरूरी है ||


इबादत इश्क में जिसकी अभी तक भी अधूरी है 

सनम को ही खुदा समझो यही श्रद्धा सबूरी है ||


 मनोज

3 टिप्‍पणियां:

  1. वाह मनोज भाई छा गए आनंद आ गया भाई जी वाह क्या कहने,
    आपकी यह रचना कल मंगलवार (18-06-2013) को ब्लॉग प्रसारण के "विशेष रचना कोना" पर लिंक की गई है कृपया पधारें.

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  2. पलक पर आंसुओं की सेज दिल में याद के बंजर ....क्या बात है .....!!

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