सब्र की बैसाखियाँ कमजोर पड़ने लग गयी
है सफ़र लम्बा मगर साँसे उखड़ने लग गयी||
ख्वाब को सच्चाईयों से भी मिलाना था मगर
रात आई नींद आँखों से बिछड़ने लग गयी ||
वक्त से भी तेज चलने की हमारी चाह में
जिंदगी की बैलगाड़ी ही पिछड़ने लग गयी ||
हम मुहोब्बत को वफ़ा से सींचते ही रह गए
बेवफाई की उन्हें दीमक पकड़ने लग गयी ||
कल लड़कपन में जिन्होंने तोड़ डाली डालियाँ
आज वो कलियाँ हया से सुर्ख पड़ने लग गयी ||
भूल बैठे थे जिन्हें हम रेत का तूफां समझ
आंसुओं की धार से फिर धूल झड़ने लग गयी ||
अलविदा कह दें भला कैसे जहाँ को हम अभी
हाथ उठते ही नयी आशा जकड़ने लग गयी ||
सब्र की बैसाखियाँ कमजोर पड़ने लग गयी
है सफ़र लम्बा मगर साँसे उखड़ने लग गयी||
मनोज
बहुत सुन्दर रचना !
जवाब देंहटाएंlatest post,नेताजी कहीन है।
latest postअनुभूति : वर्षा ऋतु
बहुत बहुत आभार आपका श्रीमान
हटाएंअलविदा कह दें भला कैसे जहाँ को हम अभी
जवाब देंहटाएंहाथ उठते ही नयी आशा जकड़ने लग गयी ||
...दिल से बधाई सर जी ||
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तभी तो हमेशा खामोश रहता है आईना !!
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