रविवार, 29 मई 2016

हर कर दिल मिटे हैं ........गजल

हार कर दिल मिटे हैं, सभी फासले
जीत को जीतने के ,चले सिलसिले ।।

इस जनम,में यही ,माँगता हूँ दुआ
हर जनम में मुझे साथ, तेरा मिले ।।

हम गलतफहमियों को ,भुलाकर सनम
साथ सुलझाएंगे ,सारे शिकवे गिले ।।

अपने अरमान, सारे मुझे सौंप कर
तुम मेरी ख्वाहिसों, को लगा लो गले ।।

चाँद तारे सभी हैं, गवाह रात के
ये मिलन की घड़ी, फिर मिले ना मिले ।।

संगेमरमर तुम्हारा, बदन देख कर
अब बहकने लगे हैं , मेरे हौसले ।।

बाँध शर्म-ओ-हया के, सभी तोड़ कर
बह रहे  हसरतों के, सभी काफिले ।।

हार कर दिल मिटे हैं, सभी फासले
जीत को जीतने के, चले सिलसिले ।।

मनोज नौटियाल
20:31pm 29-05-2016

शनिवार, 28 मई 2016

बदल कर करवटें ....... गीत

बदल कर करवटें ,वो रात भर जब ,सोचता होगा
सुबह बिस्तर में उतरी, सलवटों को, देखता होगा ।।

कदम फिर से बढ़ाने को, मुहोब्बत बोलती होगी
हया का मखमली घूँघट , तमन्ना खोलती होगी
अकेलापन ,उन्हें उनका ,अचानक रोकता होगा
बदल कर करवटें, वो रात भर ........................

कभी  भी जब वफाओं के , तराने गूंजते होंगे
अभी भी वो क़यामत की ,हदों को पूछते होंगे
कि उनके पास जाने का , कोई तो रास्ता होगा
बदल कर करवटें , वो रात भर ..................

हवा का जब कोई झोंखा ,गया होगा उन्हें छूं कर
हुआ होगा वहम उनको , गया कोई उन्हें छूं कर 
किसी बेजान तकिये से ,लिपट कर सो गया होगा

बदल कर करवटें ,वो रात भर जब ,सोचता होगा
सुबह बिस्तर में उतरी, सलवटों को, देखता होगा ।।

मनोज नौटियाल 29- 05-2016

आज अपनी लेखनी के

आज अपनी लेखनी के, खोल कर विस्तार सारे
आ गया लो मैं तुम्हारे  ,  प्रेम का श्रृंगार लिखने ।।

भाव की  भागीरथी के , मैं किनारे देखता हूँ
आज तर्पण पा गए हैं ,  वेदना के छंद सारे
बाँध रखी थी गिरह जो , वीतरागी चेतना ने
मुक्त होने लग गए हैं , प्रेम के अनुबंध सारे ।।

योग्यता के मान सारे ,आ गया हूँ  साथ लेकर
ज्ञान देती  प्रेरणाओं का नया आधार लिखने ।।

  त्याग से भरती नहीं है ,कामनाओं की सुराही
  वासना के नीर से ही ,आचमन करना पड़ेगा
इस विरह के पात्र में ,संचित रखी आहूतियों से
वेदनाओं को जला करके, हवन करना पडेगा ।।

उस हवन की राख से मैं ,आज तन मन में तुम्हारे
आ गया हूँ  मौन होकर, मौन का स्वीकार लिखने ।।

गौर से देखो ज़रा इन ,डगमगाती वीथियों को
दे रही हैं ये युगों से , साथ चलने की गवाही
हमसफ़र बन के निभाए , थे कई वादे इरादे
मंजिलों पर ख्वाहिशों ने ,दी हमें लाखों बधाई ।।

वो समय फिर लौट आया है ,चलो तुमको बता दूं
आ गया फिर लौट कर मैं , प्यार का संसार लिखने ।।

मनोज नौटियाल 28 - 05 - 2016

शुक्रवार, 27 मई 2016

कुछ ख्वाब आंसुओं की सीलन में ,गल गए

कुछ ख्वाब आंसुओं की सीलन में ,गल गए
जज्बात कुछ हसीन करारों में ,ढल गए।।

महफ़िल में आज उनका ,अंदाज देखिये
चुपचाप अजनबी से ,बचकर निकल गए ।।

हम मांगते ही रह गए,परछाइयों का साथ
हर बार अक्स लेकिन , उनके बदल गए ।।

इक रोज टूट जाएगा  , ये प्यार का महल
विश्वाश के कभी जो ,पत्थर पिघल गए ।।

अब दिल भी कह रहा है , हो जाएगा फ़ना
ये हौसले अगर कभी ,फिर से मचल गए ।।

हम बिक गए वफ़ा में , कौड़ी के दाम पर
उनके फरेब वाले , सिक्के भी चल गए ।।

कुछ ख्वाब आंसुओं की सीलन में ,गल गए
जज्बात कुछ हसीन करारों में ,ढल गए।।

मनोज नौटियाल

सोमवार, 23 मई 2016

एक गीत - जला देना पुराने ख़त

अब गीत पूरा सा हुआ

जला देना पुराने ख़त निशानी तोड़ देना सब
तुम्हारी बात को माने बिना भी रह नहीं सकता
मिटा दूं भी अगर मै याद करने के बहानों को
तुम्हारी याद के रहते जुदाई सह नहीं सकता ||

तुम्हे तो सब पता है एक दिन की भी जुदाई में
वो सारा दिन मुझे बासी कोई अखबार लगता था
तुम्हारी दीद के सदके कई दिन ईद होती थी
तुम्हारा साथ जैसे स्वर्ग का दरबार लगता था ||

अचानक यूं तेरा जाना गवारा ही नहीं अब तक
मेरा मंदिर भरोषे का अचानक ढह नहीं सकता
मिटा भी दूं अगर मैं याद करने के बहानों को
तुम्हारी याद के रहते जुदाई सह नहीं सकता ।।

नज़र किसकी लगी होगी हमारे प्रेम-मंदिर को
ज़माने के कहे तुमने सभी उपवास रक्खे हैं
मिलन की चाहतें बस थीं, हमारी प्रार्थनाओं में
मगर रब ने हमारे वास्ते वनवास रक्खे हैं||

ये कैसी आजमाइश है खुदा ही जानता होगा
मुझे तो बस यही दुःख है किसी को कह नहीं सकता
मिटा भी दूं अगर मैं याद करने के बहानों को
तुम्हारी याद के रहते जुदाई सह नहीं सकता ।।

चलो छोडो किसे अब दोष का भागी बनाऊँ मै
अकेला हूँ नहीं जिसने जुदाई की सजा पाई
कई किस्से सुने थे पर कभी सोचा नहीं था ये
इधर होगा कुआं अपने लिए, होगी उधर खाई||

गिरे भी तो सम्हलने का नहीं मौक़ा मिला हमको
ये कैसा दर्द का दरिया कभी जो बह नहीं सकता
मिटा भी दूं अगर मैं याद करने के बहानों को
तुम्हारी याद के रहते जुदाई सह नहीं सकता ।।

अगर तुम चाहती हो खुश रहूँ मै प्यार खोकर भी
खुशी से ना सही अपना कोई तुम घर बसा लेना
नहीं मंजिल हमारे प्यार की हमको मिली लेकिन
किसी का प्यार बनकर तुम चमन उसका सजा देना ||

चलो अब ये कलम भी आसुओं का हाल ना लिख दे
दिलासों का बनाया घर खड़ा ज्यादा नहीं रहता
मिटा दूं भी अगर मै याद करने के बहानों को
तुम्हारी याद के रहते जुदाई सह नहीं सकता ||...........मनोज

गीत ...... वक्त के चाक की हम धुरी बन गए

एक नयाँ ताज़ातरीन गीत

वक्त के चाक की हम धुरी बन गए ,
थी थकावट मगर बस कदम भर चले
टकटकी बाँध कर देखते रह गए
ख्वाब सारे बगावत सनम कर चले ।।
वक्त के चाक की ........................

अधबुनी ख्वाहिशेँ , जाल बनती गई
और नजदीकियां ,ढाल बनती गई
प्रेत बन कर खड़े ये ,समय के दिए
मंजिलों की डगर में ,भरम  कर चले ।।
वक्त के चाक की ........................

हुश्न के मखमली नर्म ,कालीन पर
इश्क के फूल हमने रखे ,बीन कर
वेदना की लगी आग में ,रात भर
आज खुद ही सनम हम ,हवन कर चले ।।
वक्त के चाक की ....................

तुम लखन बनके कर्तव्य पालन करो
राम को तुम समर्पित ये जीवन करो
उर्मिला बन अवध के वचन के लिए        
प्रेम वन में मेरा छाँव बन कर चले ।।

वक्त के चाक की हम धुरी बन गए
थी थकावट मगर बस कदम भर चले
टकटकी बाँध कर देखते रह गए
स्वप्न सारे बगावत सनम कर चले ।।
.......... मनोज नौटियालH

रिश्तों में ये कैसी सीलन

रिश्तों में ये कैसी सीलन , प्रश्न चिन्ह बन बैठा जीवन
एहसासों के कैनवास पर , चित्रकार का कैसा चित्रण

कैसे भूल गए हो तुम वो परिपाटी निश्चल चाहत की
जिस परिपाटी के पालन को तत्पर थे तुम पहले दिन से
मैंने अपने अहंकार से जला दिया था जिन सपनो को
अपनी भीगी आँखों में वो रखे थे तुमने चुन चुन के ।।

आज अचानक कैसे सूखा करुणा का  वो मानसरोवर
चाहत के हंसों  का जिसमे होता था मदनोस्तव पावन ।।

जब भी हो उन्मुक्त सुनाई प्रेम भरी रूबाई तुमने
कितनी बार लेखनी मेरी लांघ गई थी मर्यादाएं
मेरा एकाकी जीवन जब आया था तेरी ड्योढ़ी पर
तुम स्वागत करने को आतुर थी फैला कर अपनी बाहें

आज वहीँ दो बाहें तेरी खोज रही है नया सहारा
जिन बाहों के आलिंगन में मैंने सौंपा अपना तन मन ।।
                               मनोज

पूछ रही है हम दोनों से

पूछ रही हम दोनों से आज हमारी ही परछाई
दो हमराज आज दो पल में कैसे बन बैठे हरजाई ।।

तुम्हे एक टक देख सकूँ मैं , ऐसा ये परिवेश नहीं है
झुक जाते थे जिसके दर पे , ये ऐसा दरवेश नहीं है
जहाँ प्रेम का घर होता था , ये वो अपना देश नहीं है
जिसे देख स्तंभित हो जाता था , वो गण वेश नहीं है ।।

आज जानकर भी हम दोनों छुपा रहे अपनी सच्चाई
दो हमराज आज दो पल में कैसे बन बैठे हरजाई ।।

जहाँ कभी दोनों ने मिलकर अपनी सौगंधे की पूरी
आज डराने को व्याकुल हैं बीतराग के प्रेत अघोरी
पावन मंदिर के पीपल पर बाँधी संकल्पों की डोरी
आज खंडहर बनी ताकती है उस देवालय की ड्योढ़ी ।।

बुरे वक्त में गिना रहे हैं हम अपनी अपनी अच्छाई
दो हमराज आज दो पल में कैसे बन बैठे हरजाई ।।

चलो बही खाते चाहत के आज जरा खोलें हम दोनों
लाभ हानि की हिस्सेदारी का अनुपात टटोलें दोनों
आज बर्गलाती भाषा में , इक दूजे को बोलें दोनों
अपने अपने अहंकार को खुद ही मिलकर तोलें दोनों

आज बोलने दो दुनिया को ये ना समझे पीड़ पराई
दो हमराज आज दो पल में कैसे बन बैठे हरजाई ।।
मनोज नौटियाल

पुराना ख़त मिला उनका

पुराना ख़त मिला उनका अचानक आज कमरे में
वफ़ा का काफिला निकला अचानक आज कमरे में  ।।

हर इक एहसास लिखा था , रहेगा पास लिखा था
वो वादा खोखला निकला अचानक आज कमरे में   ।।

मुझे बेबाक हो कहना , तुम्हारे बिन नहीं रहना
वो शिकवा वो गिला निकला अचानक आज कमरे में ।।

ये ख़त इकरार था उनका , मैं पहला प्यार था उनका
पुराना सिलसिला निकला अचानक आज कमरे में ।।

ये मन भरता नहीं पढ़ के , नजर हटती नहीं ख़त से
ये कैसा जलजला उठा अचानक आज कमरे में  ।।
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                     मनोज नौटियाल

गजल

नाम बस लब पे हमारा आये
जिस तरफ भी ये इशारा जाए ।।

आह सुनके भी छटपटाते थे
आज फिर उनको पुकारा जाये ।।

रोज पैदा हुआ वहम जिनसे
उन खताओं को सुधारा जाए ।।

बुझ गए गम के शरारों से जो
उन चरागों को जलाया जाए ।।

आज तन्हाइयों की ख्वाहिश है
उनसे भी आज मिलाया जाए ।।

रोज जिस दर पे सर झुकाता हूँ
आज उनको भी बुलाया जाए ।।

नाम बस लब पे हमारा आये
जिस तरफ भी ये इशारा जाए ।।

मनोज नौटियाल